यह तब की बात है जब युद्ध बंदियों के लिए प्राणदण्ड का प्रावधान था . सार्वजनिक स्थान पर फांसी दे दी जाती थी या एक कुशल योद्धा से युद्धबंदी को तलवारबाजी का मुकाबला जीतना होता था . बंदी जीत जाता तब उसे क्षमा और रिहा कर दिया जाता .
एक दिन एक बंदी को मुकाबले के लिए तलवार पकड़ाई गयी, तब वह आनाकानी करने लगा . उसने कहा कि उसे तलवार चलाना नहीं आता, इसलिए कुशल योद्धा से उसका जीतना तो क्या जान बचना भी मुश्किल है. इससे अच्छा है ऐसे ही मार दो . तब कुछ लोगों ने कहा कि जब मरना ही है तो लड़ कर मरो. बंदी में भी कुछ साहस का संचार हुआ .
मुकाबला शुरू हुआ. मरता क्या न करता की स्थिति में वह प्राणपण से तलवार चलाने लगा. ऐसी तलवार चलाई कि कुशल योद्धा के भी छक्के छूट गए . युद्धबंदी की जीत हुई और उसे जीवनदान मिल गया.
ज़िंदगी की सीख :
हम सब में अपार संभावनाएं हैं , साहस से कोइ भी कार्य किया जाय तब सफलता निश्चित है .
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