Wednesday, June 15, 2011

परख

               एक स्त्री अपनी  पुत्री के साथ राह में चली जा रही थी. धूप   तेज थी और मंजिल दूर. पुत्री चलते - चलते बहुत थक गयी थी. तभी एक  घुड़ सवार पास से गुज़रता दिखा. स्त्री ने घुड़सवार को रोक कर कहा -  "भैया !मेरी पुत्री चलते-चलते थक गयी है. तुम इसे घोड़े पर बिठा लो. अगले मोड़ पर उतार देना."  
               
                घुड़ सवार ने तुरंत  इन्कार  कर दिया कि  कौन  झंझट  मोल  ले  . लेकिन थोड़ी दूर आगे जा कर सोचा-" उसे बिठा लेता तो क्या हर्ज़ था. लडकी सुन्दर है."  उसकी सोच में खोट आने लगा था. वह लौट पडा. 
                उधर स्त्री ने सोचा-" हाय राम, यह  क्या कह  दिया मैंने. अनजान व्यक्ति से बिना सोचे  परखे  सहायता माँगी. क्या जाने वह  अपहरण ही कर लेता."
                घुड़सवार ने  लौट कर कहा - " इतनी देर में मेरे मन ने मुझ से कहा तुम्हारी पुत्री थक गयी है. धूप  भी तेज है, आओ मैं  इसे घोड़े पर बिठा लूं."
               " इतनी देर में मेरे मन ने भी मुझ से कुछ कहा है. मुझे आपकी सहायता नहीं चाहिए. " स्त्री ने आत्म विश्वास से कहा. 
                     ज़िन्दगी की सीख :
                                     नितांत अपरिचित से सहायता न लें अथवा सहायता   लेने से पहले उसे ठीक से
                                     परख लें.   

1 comment:

  1. वाकई जिन्दगी के सबक इन छोटी-छोटी कहानियों से ही मिलते हैं...आभार आपका..
    उपयोगी संकलन मेरे लिए...

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