एक स्त्री अपनी पुत्री के साथ राह में चली जा रही थी. धूप तेज थी और मंजिल दूर. पुत्री चलते - चलते बहुत थक गयी थी. तभी एक घुड़ सवार पास से गुज़रता दिखा. स्त्री ने घुड़सवार को रोक कर कहा - "भैया !मेरी पुत्री चलते-चलते थक गयी है. तुम इसे घोड़े पर बिठा लो. अगले मोड़ पर उतार देना."
घुड़ सवार ने तुरंत इन्कार कर दिया कि कौन झंझट मोल ले . लेकिन थोड़ी दूर आगे जा कर सोचा-" उसे बिठा लेता तो क्या हर्ज़ था. लडकी सुन्दर है." उसकी सोच में खोट आने लगा था. वह लौट पडा.
उधर स्त्री ने सोचा-" हाय राम, यह क्या कह दिया मैंने. अनजान व्यक्ति से बिना सोचे परखे सहायता माँगी. क्या जाने वह अपहरण ही कर लेता."
घुड़सवार ने लौट कर कहा - " इतनी देर में मेरे मन ने मुझ से कहा तुम्हारी पुत्री थक गयी है. धूप भी तेज है, आओ मैं इसे घोड़े पर बिठा लूं."
" इतनी देर में मेरे मन ने भी मुझ से कुछ कहा है. मुझे आपकी सहायता नहीं चाहिए. " स्त्री ने आत्म विश्वास से कहा.
ज़िन्दगी की सीख :
नितांत अपरिचित से सहायता न लें अथवा सहायता लेने से पहले उसे ठीक से
परख लें.
वाकई जिन्दगी के सबक इन छोटी-छोटी कहानियों से ही मिलते हैं...आभार आपका..
ReplyDeleteउपयोगी संकलन मेरे लिए...