एक बार एक महात्मा किसी नगर में पधारे।वे महात्मा बहुत ज्ञानी थे,इसलिए नगर के राजा ने उन्हें अपने यहां रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किया।उनके पधारने पर राजा ने उनका खूब आदर सत्कार किया ।भोजन के बाद जब महात्मा वहां से जाने लगे तो राजा नें कहा "महात्मन मुझे कुछ ज्ञान की बाते बताएं"
इस पर महात्मा ने राजो को दो पर्चियां दी कहां कि पहली पर्ची तब खोलना जब तुम बहुत ज्यादा खुश रहो और दूसरी पर्ची तब खोलना जब तुम बहुतज्यादा दुखी रहो।
राजा को वर्षों तक अपना उत्तराधिकारी नहीं मिल रहा था बह अपनी संतान के लिए परेशान रहताथा.फिर एक दिन उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई राजा के लिए यह सब से बड़ा खुशी का दिन था....राजा ने उस महात्मा की पहली पर्ची खोलकर पढी...उसमें लिखा था..ऐसा नहीं रहेगा...............।कुछ दिनों के बाद उसके राज्य में पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया और राजा का सब कुछ छिन गया.............राजा उस दिन बेहद दुखी हुआ उसने महात्मा की दूसरी पर्ची खोली उसमें लिखा था.....यह सब भी नहीं रहेगा। राजा को समझते देर नहीं लगी किउसका बुरा समय चल रहा है यह ज्यादा नहीं रहेगा।
सबक
जीवन है तो सुख दुख भी है।यह सुख दुख एक पहिए के दो छोर की भांति है ,जो एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं......यदि दुख है तो सुख भी आयेगा...और सुख है तो दुख भी आयेगा....।अतः विपरीत समय को देखकर कभी घबराना नहीं चाहिए
सुन्दर लेखन, बधाई ।
ReplyDeletebilkul sahi kaha.. sukh dukh to aani jaani baatein hai zindgi mein.. inka saamna karna chahiye... badiya lekh..
ReplyDeleteMeri nayi kavita : Tera saath hi bada pyara hai..(तेरा साथ ही बड़ा प्यारा है ..)
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सही कहा,समय कभी एक सा नहीं रहता,कभी सुख और कभी दुख ।
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