Saturday, August 25, 2012

जिसकी जितनी क्षमता उसके उतने अधिकार

पिछले दिनों महाभारत की एक कहानी पड़ने को मिली आप लोगो से बाँट रहा हूँ...... (महाभारत, शांतिपर्व के अंतर्गत राजधर्मानुशासन पर्व, अध्याय 16)

एक तपस्वी मुनि के आश्रम में कभी कोई ग्रामीण कुत्ता भूले-भटके पहुंच जाता है और फिर वहीं का होकर रह जाता है । मुनि के आश्रम में रहते हुए वह सात्विक वृत्ति का हो जाता है और जन-समुदाय के साथ उनके उपदेश सुनता है । एक बार वह निकट के जंगल में घूमते-टहलते हुए एक चीते को देखता है, जो उस पर आक्रमण करने हेतु उसकी ओर बढ़ता है । कुत्ता दौड़ता हुआ मुनि के पास पहुंचता है और उन्हें अपनी भयजन्य व्यथा सुनाता है । उस पर तरस खाते हुए सिद्धिप्राप्त तपस्वी मुनि उसे अपनी मंत्रशक्ति से चीता बना देते हैं और कहते हैं, “तुम्हें अब कोई भय नहीं होगा उस चीते से ।”

समय बीतता है और तब एक दिन उस चीते को पास के जंगल में एक बाघ के दर्शन होते हैं । उसकी स्थिति फिर पहले की जैसी हो जाती है । भयभीत वह दौढ़ते हुए मुनि के पहुंचता है । उसके डर को देखकर वे इस बार उसे बाघ बना देते हैं । कुछ दिन तक सब ठीक चलता है, किंतु फिर एक दिन अब बाघ बन चुके उस कुत्ते को एक हाथी दिख जाता है जो उससे डरने के बजाय उसे मारने दौड़ पड़ता है । उस बाघ को एहसास होता है कि हाथी तो उससे भी ताकतवर है और उसे तो मार सकता है । बस वह दौड़ता-भागता उस तपस्वी के पास पहुंचता है और अपनी शिकायत सुनाता है । वे इस बार फिर करुणाग्रस्त हो जाते हैं और उसे अभिमंत्रित जल से सींचकर हाथी का रूप दे देते हैं ।

वह स्वच्छद होकर आस-पास जंगल में घूमने लगता है । लेकिन उसकी समस्या अभी समाप्त नहीं होती है । इस बार उसका सामना होता है बलशाली सिंह से, जो उससे डरने के बजाय उसी पर हमला कर देता है । हाथी समझ जाता है कि सिंह उससे भी बलवान् है और कभी भी घात लगाकर उसे मार सकता है । वह भागता हुआ मुनि की शरण में आता है और पूरा वाकया सुनाता है । मुनि उसे आश्वस्त करते हुए कहते हैं, “घबड़ाओ मत, मैं तुम्हें बलिष्ठ सिंह बना देता हूं । तुम्हारे सभी भय अब समाप्त हो जायेंगे ।” और वह एक ताकतवर सिंह बन जाता है ।

इसके बाद वह सिंह निर्भय होकर जंगल में घूमता है, जानवरों का शिकार करके पेट भरता है और फिर आश्रम पर लौट आता है । स्वयं मुनि को उससे कोई भय नहीं रहता है । फिर एक दिन उस सिंह को दिखता है एक शरभ । (महाभारत की उस कथा में शरभ को एक आठ पांव वाला भयानक हिंसक जानवर बताया गया है जो सिंहों का भी शिकार कर उन्हें खा जाता है । लगता है कि यह एक पूर्णतः काल्पनिक पशु था ।) सिंह उसे देख भयग्रस्त होकर भागता है और उस तपस्वी की शरण में पहुंचता है । सदैव की भांति मुनि उसे जंगल के उस शरभ से अधिक बलशाली शरभ बना देते हैं । वह अब निश्चिंत हो जंगल में घूमने-फिरने लगता है ।
                       कथा अब एक खतरनाक मोड़ पर आ पहुंचती है । समय के साथ शरभ बन चुके उस कुत्ते के मन में कुविचार आना आरंभ हो जाते हैं । वह सोचने लगता है, “जब यह तपस्वी अपने मंत्रबल से मुझे शरभ बना सकता है तो कभी किसी और पर भी ऐसी ही अनुकंपा कर सकता है । तब मेरा तो वर्चस्व ही समाप्त हो जायेगा । उस संभावना को टालने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि इस तपस्वी को ही मार डाला जाये ।” वह शरभरूपी कुत्ता यह सब सोच ही रहा होता है कि अपनी सिद्धि के बल पर उस मुनि को उसके नापाक इरादों का पता चल जाता है । वे खतरा भांप जाते हैं और उसे “तुम विश्वासयोग्य नहीं हो, अतः जाओ अपने पुराने शुनक (कुत्ता) योनि में ।” कहते हुए उसे पुनः कुत्ता बना देते हैं ।
जिन्दगी की सीख : महाभारत में यह कथा शरशय्या पर पड़े भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को सुनायी गयी है, यह सुझाते हुए कि राजकाज में किसी व्यक्ति के स्वभाव को पहचान कर ही उसके अधिकारों में वृद्धि करनी चाहिए .

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. रोचक, अधिकार बढ़ाकर मन की प्रवृत्ति पता चल जाती है।

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  4. सुंदर कथा है !
    पुराने जमाने के कुत्तों को होती थी जरूरत मंत्रों की अब तो कुत्ते बिना मंत्रों के ढूँढ लेते है रास्ते अपने बचाव के चीतों को शेर से भिड़ा देते हैं
    और अपना पतली गली से निकल जाते हैं !

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  5. सुन्दर बोधकथा

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