Sunday, August 22, 2010

दुर्गम मार्ग में कठिनाई तो आयेगी है......


जब  संत कबीर को ज्ञान हासिल हुआ ।उसके बाद वे गांव गांव जाकर उसका प्रचार -प्रसार करने लगे।एक बार ने एक गांव मे गए और अपनी  बातें कहीं।उनकी बात से सभी प्रभावित हुए। जब व उस गांव से लौटने लगे तोउनके साथ सारे ग्रामीण  भी हो लिए और उन्होनें कहा "वे सब उनकी प्रभावित हैं,और वे उनके अनुयायी होना चाहते हैं"

      उसके बाद कबीर दूसरे गांव गये।वहां भी उन्होनें व्याख्यान दिया।वहां भी सभी उनसे प्रभावित होकर उनके साथ चल दिये। और उनका काफिला लंबा होता चला गया ।
                              एक दिन जब वे किसी गाव से लौट रहे थे तब वे एक दर्रे से गुजरे वहां काफी अंधेरा था वब जगह भी काफी संकरी थी।उस  दररें में प्रवेश के समय ही कई लोग भय के मारे बाहर ही ठहर गये।कबीर ागे बढ़ते गये भीड कम होती गई।आगे चलकर उन्होनें सभी को पुकारा सभी ने कहा"अंधेरा बहुत है।बे सब आगे  बढ़ने में लाचार हैं"।कबीर और आगे बढ़ गये । जैसे जैसे वे  आगे बढते गये भीड  पीछे पीछे छूटती गई।अंत में एक दम सघन अंधकार में पहुंच गये कि लहां अपने शरीर के किसी अंग को भी नहीं देख पाएं।कबीर ने सभी को पुकार किंतु अब वे बिल्कुल अकेले हो चुके थे ।वहां उनके अतिरिक्त कोई भी नहीं था। कबीर को केवल अपनी ही आवाज  गूंजती सुनाई दी ।कबीर अब अकेले ही आगे बढते गये बढ़ते गये अंधेरा था कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा थाऔर तभी उन्हें प्रकाश की किरण फूटती दिखाई दी।जैसे जैसे वे  आगे बढ़ते गये प्रकाश तेज होता गया.वही प्रकाश अब उनके मुख पर भी दमक रहा था।जो पीछे छूट गये थे,वे पीछ ही रह  गये।

सबक
              यह जीवन एक संघर्ष है ईश्वर ने सभी को यह जीवन दिया है और इसके साथ एक लक्ष्य भी दिया गया है,जो हमें इस जीवन में ही पूरा करने में कई तरह के कष्ट आंयेगें. जो इन कष्टों पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ता है वहीं अंत में विजय होता है....।

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