Saturday, February 26, 2011

पशु-पक्षी-सम्मेलन

मनुष्यों की नित नयी करतूतों से तंग आकर पशु-पक्षियों के प्रतिनिधि नेपाल के एक बीहड़ वन में इकट्ठे हुए कोयल के मधुर गीत के बाद कागराज ने चाहा कि सम्मेलन के अध्यक्ष पद को सिंहराज सुशोभित करें कि सिंह गरजकर बोला, ‘‘कागराज, तुम मानव-संसार में रहते-रहते मनुष्य बनते जा रहे हो। अन्यथा इस तरह की बात न कहते। ध्यान रहे यह पशु-सम्मेलन है। अपने समाज में कौन छोटा, कौन बड़ा ? यहाँ सब एक समान हैं।’’
सिंह की बात सभी को पसन्द आयी। पशु-पक्षी गरदन हिला-हिलाकर सिंह के इस विचार की सराहना करने लगे। काग ने क्षमा माँगते हुए कहा, ‘‘संस्कारवश मुझसे सचमुच भूल हुई। मुझे इसका खेद है। लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं मनुष्य कदापि नहीं हूँ और न कभी होने का प्रयास करूँगा।’’

कागराज के इस नम्र व्यवहार से पशु-पक्षी बहुत प्रसन्न हुए। कोलाहल और कलरव शान्त होने पर तोते ने कहा—
‘‘हमें पशु-पक्षियों की भलाई की बातें सोचनी हैं। इसलिए जो भाई-बहन उपयोगी सुझाव देना चाहते हैं, सम्मेलन में पेश करें। समर्थन और अनुमोदन होने के बाद सम्मेलन उस पर विचार करेगा।’’
तोते की बात सुनकर गजराज से न रहा गया। वह तनिक आवेश भरे स्वर में बोला, ‘‘तोताराम, तुम केवल मनुष्यों-जैसी बोली ही नहीं बोलते। हर बात में उनकी नक़ल भी करते हो। तुम यह बिलकुल भूल गये कि हम जहाँ बैठे हुए हैं, वहाँ मनुष्यों-जैसी नक़लो-हरकत करना पाप है।’’
गजराज की बात सुनकर सभी एक स्वर में बोले, ‘‘बेशक, बेशक।’’

भालू ने गजराज की बात को पुष्ट करते हुए कहा, ‘‘हमारे दिलों में जो बात उठेगी, उसे हम जरूर कहेंगे। समर्थन और अनुमोदन का अड़ंगा लगाने की जरूरत नहीं। एक भी पशु-पक्षी का दुःख-सुख समूचे पशु-पक्षी समाज का दुःख सुख है।’’
भालू अपनी बात पूरी कह भी न पाया था कि एकाएक सम्मेलन में आतंक-सा गया। सभी पशु-पक्षी जिस ओर देखने लगे, वहाँ एक सर्प फन फैलाये दोनों जीभ निकाल-निकालकर आग्नेय नेत्रों से पशु-पक्षियों को घूर रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए मयूर बोला, ‘‘यह मनुष्यों का देवता हमारे सम्मेलन में क्यों आया है ? मनुष्य तो अपने बन्धुओं का ही रक्त पीता है, परन्तु उसका यह देवता तो अपनी सन्तान का भी भक्षण कर जाता है। ऐसे कुलसंहारी को फ़ौरन सभा से निकाल दिया जाए।’’
सर्प अपनी सफ़ाई में कुछ कहना चाहता था, लेकिन गरुड़, नेवले, बिलाव आदि के एक साथ विरोध करने पर उसे मजबूरन जाना पड़ा। मयूर के इस विरोध की प्रशंसा करते हुए सिंह बोला, ‘‘यह माना कि हम पशु-पक्षियों में कितने ही मांस-भक्षी भी हैं। लेकिन वे बन्धु-घातक या सन्तान-भक्षी नहीं। अच्छा ही हुआ जो सर्पराज को भगा दिया। इस सम्मेलन का इस पातकी से क्या वास्ता ?’’

सिंह के उक्त बोल बन्दर को न भाये। वह साहस करके बोला, ‘‘बुरा न मानना वनराज, तुम्हीं कहाँ के भले हो। अपने पेट के लिए रोज़ाना वनचरों को मार-मारकर खाते हो। आप किस मुँह से सर्प की बुराई करते हैं ?’’
सिंह अपनी सफ़ाई देना ही चाहता था कि बया चट बोल पड़ी, ‘‘बानर, पहले तुम मनुष्य थे, इसलिए इतनी मूर्खतापूर्ण बात कह सके हो। मालूम होता है कि अभी तक पुराने संस्कार मिटे नहीं ? तुम यह भूल गये कि सिंहराज मांस-भक्षी होते हुए भी पेट के लिए सजातीय-वध कभी नहीं करते। वे अपने पेट की आग उसी इन्सानी-ख़ून से बुझाते हैं, जो दूसरों के शोषण से इतना ज़हरीला हो गया है कि घास पर पड़े तो वह भी जल जाए। इन्सानी ख़ून न मिलने पर इन्सानों की संगति में रहनेवाली भैंस, गाय, बकरी आदि का उपयोग करते हैं। जब वे नहीं मिलते तब कई-कई रोज़ भूखे पड़े रहने के बाद मजबूर होने पर हिरन-खरगोश को सहमते हुए लेते हैं। ये मनुष्यों की तरह द्वेष या कौतुकवश किसी का वध नहीं करते। पेट भरा हो तो दुनिया की नेमतें सामने से गुज़र जाने पर आँख उठाकर भी उस तरफ़ नहीं देखते।’’

बया अभी बोल ही रही थी कि पशु-पक्षी एक साथ चिल्ला उठे, ‘‘बानर, तुम अपने शब्द वापस लो, तुमने व्यर्थ लांछन लगाकर वनराज का अपमान किया है। उनका अपमान हम सबका अपमान है। तुम्हारी सूरत और वाणी से मनुष्यता का आभास मिल रहा है। इस तरह के व्यर्थ के छिद्रान्वेषण मनुष्य ही कर सकता है, हमें शोभा नहीं देता।’’
सम्मेलन में विरोध का बवण्डर उठते देख सिंह गम्भीर और संयत होकर बोला, ‘‘शान्त-शान्त, साथियों ! सम्मेलन में सभी को बोलने का पूरा अधिकार है। ध्यान रहे, हम पशु हैं, मनुष्य नहीं। मनुष्यों की बातों से मनुष्य का अपमान होता है। पशु पशु की बात का बुरा नहीं मानते।’’
सिंह के इस कथन से साधु-साधु का घोष थोड़ी देर गूँजता रहा। शान्ति होने पर बानर क्षमा-याचना के स्वर में बोला, ‘‘सज्जनों, किसी युग में हम मनुष्य रहे होंगे, किन्तु अब हम मनुष्य क़तई नहीं हैं। हममें एक भी मनुष्यों-जैसा दुर्गुण नहीं है।’’
मैना शेख़ी में बोली, ‘‘वाह बानर भाई ! तुमने यह एक ही दूनकी हाँकी। भला तुममें कौन-सा दुर्गुण मानवों-जैसा नहीं है। केवल पूँछ निकल आने से क्या होता है ? तुम मनुष्य की तरह विषयी, लोलुप, चंचल और स्वार्थी हो। यूँ मरे हुए अपने बच्चे को छह महीने गोद में लिये फिरते हो, परन्तु उसके मुँह का दाना भी निकाल कर खा जाते हो। मनुष्यों की तरह तुम भी अपने सजातीयों से लड़ते-झगड़ते हो। भूख न होने पर भी केवल कौतुकवश मूक पक्षियों के अण्डे-घोंसले बरबाद करते रहते हो। जिस स्थान में रहते हो, उसे ही वीरान कर डालते हो। भरी फ़सल उजाड़ देते हो। कोई नसीहत करे तो उसे ही नष्ट कर देते हो।’’

सभी पशु-पक्षी : ‘‘बेशक-बेशक।’’
बानर झेंपते हुए बोला, ‘‘क्षमा साथियों, मैना का अभियोग मैं स्वीकार करता हूँ। लेकिन मैं आप सबको यक़ीन दिलाता हूँ कि इन बुराइयों के होते हुए भी हममें अनेक ख़ूबियाँ भी मौजूद हैं। हम आपस में कभी-कभी लड़ते ज़रूर हैं, लेकिन दूसरों के मुक़ाबिले पर हम सब एक हो जाते हैं। हम मनुष्यों की तरह अपने बन्धु-बान्धवों पर आयी आफ़त से न प्रसन्न होते हैं, न समाज-द्रोह करते हैं और न शत्रु से मिलते हैं। हम उनकी तरह संचय भी नहीं करते। हम अपने नेता को नेता मानते हैं। उसकी आज्ञा का उल्लंघन स्वप्न में भी नहीं करते। हमारी शक्ल-सूरत धीरे-धीरे बदल रही है। आशा है समस्त अवगुण भी धीरे-धीरे जाते रहेंगे। आपने हम पर तो मनुष्य-समानता का दोष लगाया, किन्तु श्वान को कुछ नहीं कहा, जो उसके जूठे टुकड़ों पर दिन-रात उसके आगे पूँछ हिलाता रहता है।’’
हिरन: ‘‘पूँछ ही नहीं हिलाता, उसके संकेत पर सजातियों से लड़ता रहता है।’’
शूकर: और अन्तर्जातीयों पर भी आक्रमण करता है।’’
खरगोश: ‘‘इन लोगों के लिए सजातीय और अन्तर्जातीय क्या, यह तो भूख में अपने बच्चों को भी चबा डालते हैं।’’
चीता: ‘‘यह मनुष्यों का सी. आई. डी. है, इसे सम्मेलन से भगाया जाए।’’
श्वान: ‘‘दुहाई है सरदारों, हमारी अरदास सुन लो, फिर जो चाहे फ़ैसला करना। हम इन्सानी आबादी में रहते-रहते, उनका नमक खाते-खाते अनेक अवगुण अपना चुके हैं। फिर भी पश्वोचित बहुत-से गुण अब भी मौजूद हैं। हम उनकी तरह न कामुक हैं, न नमक हराम हैं, न रक्षक भेष में भक्षक हैं। जो तनिक-सा भी हम पर एहसान कर देता है, जीवन-भर हक़ अदा करते हैं। हम जान पर खेलकर उपकारी की सेवा करते हैं।’’
हंस: ‘‘मेरी नम्र सम्मति में एक-दूसरे पर छींटा-कशी करने के बजाय हमें मुख्य लक्ष्य की ओर अब ध्यान देना चाहिए।’’
सब पशु-पक्षी: ‘‘यथार्थ-यथार्थ।’’

गर्दभ: ‘‘मुझे इस बात का बेहद मलाल है कि मनुष्य मुझे गधा कहता है। मैं उसकी एक पाई ख़र्च कराये बग़ैर जंगल में घास-पानी से पेट भर लेता हूँ। हर मौसम में दिन-रात उसके काम में जुटा रहता हूँ। फिर भी वह मुझे डण्डों से पीटता रहता है, गधा कहकर मेरा उपहास करता है।’’
गजराज: ‘‘यह सचमुच बहुत लज्जा की बात है। इतने सरल और परिश्रमी को गधा कहना कदापि योग्य नहीं है।’’
चीता: ‘‘मनुष्यों के लिए क्या योग्य है और क्या अयोग्य, इससे हमें क्या मतलब ? वह योग्य बात करता ही कौन-सी है, जो हम उसकी अयोग्य बातों का उल्लेख करें ?’’
सब: ‘‘तब क्या करना चाहिए।’’
चीता: ‘‘जो निठल्लों के लिए श्रम करेगा और बदले में कुछ न लेगा, उसे मनुष्य का सारा संसार गधा कहेगा। इससे बढ़कर गधेपन की बात और क्या हो सकती है ? गर्दभराज को चाहिए कि वह हज़रते-इन्सान के चक्कर से निकलकर हमारी तरफ स्वच्छन्द विचरण करे, फिर देखें उसे कौन गधा कहता है ?’’
सब: ‘‘बेशक-बेशक।’’

सिंह: ‘‘साथियो, हज़रते-इन्सान ने हम सबको गुलाम बनाने और मिटाने का पक्का इरादा कर लिया है। हमारे ही समाज के घोड़े, हाथी, भैंस, गाय, बकरी, श्वान आदि को गुलामी का ज़ंजीरों में जकड़ लिया है। तोता, मैना, बुलबुल को फाँसता रहता है। हमारे बहुत-से सजातियों को मारकर खा जाता है। जो खाये नहीं जा सकते, उन पर बोझा ढोता है। पिंजरों, कठघरों में बन्द करके रखता है। अजायबघरों और सरकसों में शेख़ी बघार-बघारकर हमारा प्रदर्शन करता है। ईमान की बात तो यह है कि वह अपने सिवा संसार में किसी को रहने नहीं देना चाहता। अपने मौज़-शौक़ के लिए पर्वतों को तोड़-फोड़कर जमीन से मिला रहा है। दरियाओं को बाँध रहा है। वनों जंगलों को काट रहा है। अब आप सब भाई-बहन बताएँ कि हम सब इसके चंगुल से कैसे बचकर रहें और रहें भी तो कहाँ रहें ?’’

चीता: ‘‘बड़े भाई ने पशु-पक्षी-समाज की समस्याओं का बहुत ही संक्षेप में सुन्दर ढंग से उल्लेख कर दिया है। मुझे केवल इतना कहना है कि जब वह स्वयं को ग़ुलाम कहलाना पसन्द नहीं करता तब उसने हमारे कुछ भाई-बहनों को ग़ुलामी की ज़ंजीरों में क्यों जकड़ रखा है ? समानता का हिमायती हमारे साथ असमानता का यह दुर्व्यवहार क्यों कर रहा है ? और अगर उसे अपने बल का घमण्ड है तो मर्दानावार आकर हमसे लड़े। यह कहाँ की शऱाफत और बहादुरी है कि धोखे-छल-फ़रेब से छिप-छिपकर हम निहत्थों पर अस्त्र-शस्त्रों-द्वारा ग़ोल के ग़ोल टूट पड़ें। और इस कायरतापूर्ण हमले को बहादुरी का नाम दिया जाए। अगर हज़रते-इन्सान को अपने बल का ज़ोम है तो सामने आकर हम निहत्थों से निहत्था लड़े। यह कहाँ कि मर्दानगी है कि मुँह में तिनका लिये हुए हिरन, खरगोश-जैसे कोमल और निरीह पशुओं का कई-कई मनुष्य मिलकर हथियारों से मुक़ाबला करें। आराम करते पक्षियों को धराशायी करें।’’

हंस: ‘‘साथियों, मनुष्य जाति को अपने बल और ज्ञान पर बहुत घमण्ड हो गया है। मगर घमण्डी का सिर कभी-न-कभी ज़रूर नीचे होता है। यह माना कि वह संसार-विनाश के अनेक उपाय निकाल रहा है। मगर आप यक़ीन रखिए कि ये सब उपाय उसी का नाश करेंगे। मकड़ी औरों को फँसाने के लिए जाला बुनती है, परन्तु स्वयं उसमें फँस जाती है। मनुष्यों ने हमें सताने को शुरू-शुरू में हथियार बनाये, परन्तु अब उन्हीं हथियारों से परस्पर लड़ने लगे हैं। एक-एक गोले से लाखों मनुष्यों की हत्याएँ की जाने लगी हैं। जो दूसरों के गिराने के लिए गड्ढा खोदता है, उसके लिए भी ख़ुदा हुआ कुआँ तैयार रहता है। आप सब निर्भय होकर विचरण करें, मानव हमारा क्या समूल नाश करेगा, स्वयं ही परस्पर लड़कर मिट जाएगा।’’
हंस के विचार सभी को पसन्द आये। अन्त में कोयल के इस गान के बाद सम्मेलन का कार्य समाप्त हुआ—
दोस्तों एक बात हमेशा याद रखें....
ज़ुल्म जो ढाएगा इक दिन याद रख।
वह सज़ा पाएगा इक दिन याद रख।।
ज़ुल्म के बदले मिलेंगे जब उसे।
वह भी दिन आएगा इक दिन याद रख।।
मेटकर हमको कोई क्या पाएगा।
ख़ुद ही मिट जाएगा इक दिन याद रख।।

4 comments:

  1. आचार्य जी

    बहुत अच्छी नीति कथा है

    बधाई.

    मनुष्यों ने हमें सताने को शुरू-शुरू में हथियार बनाये, परन्तु अब उन्हीं हथियारों से परस्पर लड़ने लगे हैं। एक-एक गोले से लाखों मनुष्यों की हत्याएँ की जाने लगी हैं। जो दूसरों के गिराने के लिए गड्ढा खोदता है, उसके लिए भी ख़ुदा हुआ कुआँ तैयार रहता है। आप सब निर्भय होकर विचरण करें, मानव हमारा क्या समूल नाश करेगा, स्वयं ही परस्पर लड़कर मिट जाएगा।

    -विजय तिवारी " किसलय"

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  2. सही कहा किसलय जी आभार

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  3. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए आपका आभार. आपका ब्लॉग दिनोदिन उन्नति की ओर अग्रसर हो, आपकी लेखन विधा प्रशंसनीय है. आप हमारे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "अनुसरण कर्ता" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
    भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
    माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग

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  4. आभार हरीश जी

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