Friday, December 24, 2010

धन से बडा मन...

किसी गाव में बिलाल्पादक नाम का एक धनी सेठ रहता था वह स्वार्थी होने के साथ ही अच्छें आचरणों से भी दूर ही रहता था।उसका पडोसी गरीब लेकिन दानशील था उसने एक बार भगवान बुद्ध और शिष्यों को भोजन के लिए आमंत्रित किया । ऐसे संकल्प के साथ पडोसी ने बडे भोज की तैयारी करने के लिए नगर के सभी बडे व्यक्तियों से दान की अपेक्षा की एवं उन्हे भोज केलिए आमंत्रित किया।पडोसी ने बिलाल्पादक को भी न्यौता दिया।भोज के दो एक दिन पहलेपडोसी ने सभी जगह से दान एकत्र किया।जिसकी जैसी सामर्थ्य थी उसने उतना दान दिया।जब बिलाल्पादक ने पडोसी को घर घर जाकर दान की याचना करते देखा तो मन ही मन सोचा इस आदमी से खुद का पेट पालते तोबनता नहीं है फिर भी इसने इतने बडे भिक्षु संघ को औऱ नागरिकों को भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया ।अब घर घर जाकर इसे भिक्षा मांगनी पड रही है।यह मेरे घऱ भी याचनाकरने आता ही होगा।।...पडोसी बिलाल्पदक के द्वार दान मांगने के लिए आया तो बिलाल्पदक ने उसे थोडा सा नमक ,शहद औऱ घी दे दिया।पडोसी ने दान ग्रहण किया परंतु उसे अन्य व्यक्तियों के दान के साथ नहीं मिलाया बल्कि अगल रखा।बिलाल्पादक को यह देखकर बहुत अचरज हुआ उसे लगा कि उसने सभी लोगों के सामने उसे लज्जित करने के लिए ऐसा कियाहै।बिल्लापदक ने अपने नौकर को पडोसी के घर जाकर इसका पता लगाने के लिए कहा।..नौकर ने लौट कर बताया कि पडोसी ने उसकी दी सामाग्री को लेकर थोडा थोडा चावल दाल सब्जी और खीर आदि मे मिला दिया है।भोज के दिन वह अपने कपडो के भीतर एक कटार छुपा कर ले गया ताकि लज्जित करने पर वह पडोसी को मार सके। लेकिन पडोसी को भगवान बुद्ध से यह कहते हुए सुना कि " भगवन इस भोज के निमित्त जो द्रव्य सगृहित किया गया है वह मैने नगर के सभी निवासियों से दान में प्राप्त किया है...कम हो या अधिक सभी ने पूर्णश्रृध्दा के साथ दान दिया है....अत सभी के दान का मूल्य समान है...यह सुनकर बिलोत्पादक को अपने कार्य पर बड़ा पछतावा हुआ औरउसने पडोसी से क्षमा मांग ली...

सबक

मित्रों व्यक्ति धन से नहीं दिल से बडा होता है अगर आपकी भावना अच्छी है तो आपकी सहायता स्वयं भगवान करेगें...

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