Tuesday, November 16, 2010

समझदारी से न्याय

पेशवा माधव राव के शासन में लोगों से बेगार लेकर सरकारी कार्य करवाए जाते थे,जिन्हे श्रमदान कहा जाता था।लोगों से प्राय: जबरदस्ती काम लिया जाता था,राम शास्त्री उस समय प्रधान न्यायाधीश हुआ करते थे।एक दिन वे कहीं जा रहे तो उन्होंने देखा कि एक सिपाही एक किसान को जबरदस्ती घसीट रहा था,और पीट रहा था,उसकी मां उसे रो रो कर छोड देने की प्रार्थना कर रही थी। यह देख कर शास्त्री सिपाही के पास गये और युवक को छोड देने को कहा। सिपाही ने उनकी बात नहीं मानी औऱ सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में बांधकर पेशवा के समुख्ख पेश कर दिया। उन्हें देखकर पेशवा माधवराव बहुत गुस्सा हुए और उन्हें सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में दंड का हकदार माना।यह सुनकर शास्त्री विन्रम स्वर में बोले की  आप मुझे जो भी दंड देगें वह स्वीकार है।मगर इनदिनों खेतों में काम बहुत है अगर ये किसान अपने काम छोडकर आते तो खेतों मेंसारा काम पिछड जाता। इनसे इनका तो नुसकान होगा ही राज्य को भी हानि हो गी।इनसे उस समय काम लेना  चाहिए जब खेतों में कोई विशेष कार्य ना हो।फिर वह किसान की तरफ मुड़े और कहा कि बोलों तुम क्या चाहते हैं किसान ने भी कहा कि यही जो आप चाहते हैं। हमें अपने राजा के लिए काम करने में कोई परहेज नहीं है बस हमारे पास काम नहीं होना चाहिए.....।यह सुनकर पेशवा को अपना निर्णय बदलना पडा....।

सबक

धैर्य औऱ समझदारी के साथ अपनी बात रखने पर उसके नकारे जाने की संभावना न के बराबर हो जाती है

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