Thursday, August 19, 2010

जरूरत किस की कितनी.........

बात उस समय की है जब सिंकदर विश्व को जीतने के अभियान पर निकला था। अपनी सेनाओं के साथ एक एक कर उसने कई शाबर रौंद जाले। उसे सफलता मिलती गई,उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया।एक बार किसी नगर मं लड़ते-लड़ते जब वह थक गया तो एक घर के सामने उसने घोड़ा रोका।दरवाजा खटखटाने पर एक बुढिया ने दरवाजा खोला,सिंकदर ने कहा मुझे जोर की भूख लगी है खाना दो।बुढिया ने सिकंदर को पहचान लिया और अंदर चली गई कुछ देऱ बाद वह एक थाल लेकर आई जिस पर कपड़ा ढका था।सिंकदर ने कपड़ा हटाया तो देखा खाने की जगह जेवर रखें हैं।उसने कहा मैने खाना मांगा था जेवर तो में खा नहीं सकता
          इस पर बुढिया बोली तुम्हारी  भूख रोटियों से मिट जाती तो मैं तुम यहां क्यों आते तुम्हारे देश में तो रोटियां हैं ही।तुम्हे तो सोने की भूख है।बुढिया की बात सुनकर सिंकदर बिना लडे वापस चला गया।जाते जाते उसने नगर के मुख्य रास्ते पर शिलालेख लगवाया जिस पर लिखा था अज्ञानी सिंकदरको इस नगर की महान नारी ने अच्छा सबक सिखाया।

दोस्तों कुछ ऐसी ही भूख के साथ हम भी जी रहे हैं।हमारे जीवन की मूलभूत जरूरत पूरी होते हुए भी हम पडोसी के यहां ताकते हैं होना तो चाहिए कि हमें जो प्राप्त है उसी में खुश रहन सीखना चाहिए...

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